इतनी दुर्लभ है ये बीमारी कि पूरे देश में इसके सिर्फ 19858 मरीज हैं

इतनी दुर्लभ है ये बीमारी कि पूरे देश में इसके सिर्फ 19858 मरीज हैं

सेहतराग टीम

किसी भी गंभीर चोट की स्थिति में शरीर से खून बहना एक स्‍वाभाविक प्रक्रिया होती है। मगर क्‍या आप जानते हैं कि ये खून बहना धीरे-धीरे अपने आप बंद क्‍यों हो जाता है? दरअसल इसके पीछे हमारे खून में पाया जाने वाला एक सब्‍सटांस है जिसे क्‍लॉटिंग फैक्‍टर कहा जाता है। ये सब्‍सटांस रक्‍त कोशिकाओं के साथ मिलकर खून का थक्‍का जमा देता है जिसके कारण खून बहना बंद हो जाता है। ये प्रक्रिया हमारे शरीर में प्राकृतिक रूप से होती है और जिन लोगों के शरीर में ऐसा नहीं होता या कम होता है उन्‍हें दुर्लभ बीमारी हीमोफीलिया से ग्रस्‍त कहा जाता है।

लोगों को बीमारी का पता नहीं चलता

हीमोफीलिया फेडरेशन इंडिया के अनुसार भारत में कुल 19858 लोग हीमोफीलिया से ग्रस्‍त हैं। इनमें से 80 फीसदी हीमोफीलिया ए से, 12 फीसदी हीमोफीलिया बी से और 3 फीसदी वोन विलब्रेंड डिजीज (वीडब्‍ल्‍यूडी) से ग्रस्‍त हैं। इस बीमारी से ग्रस्‍त अधिकतर लोगों को पता ही नहीं होता कि उन्‍हें ये बीमारी है और इसलिए वो इलाज के लिए भी नहीं पहुंच पाते। इसे देखते हुए हीमोफीलिया के प्रति देश में जागरूकता बढ़ाने की जरूरत है।

क्‍या कहते हैं डॉक्‍टर

इस बारे में इंडियन मेडिकल एसोसिएशन के पूर्व अध्‍यक्ष डॉक्‍टर के.के. अग्रवाल ने कहा कि महिलाएं हीमोफीलिया की वाहक होती हैं। सामान्‍य रूप से ये जान को खतरे वाली बीमारी नहीं होती बशर्ते खून का स्राव किसी महत्‍वपूर्ण अंग से न हो रहा हो। हालांकि ये मरीज को बेहद दुर्बल बना देती है और वर्तमान में इस बीमारी का कोई ज्ञात इलाज नहीं है।

डॉक्‍टर अग्रवाल ने कहा कि इस बीमारी के करीब एक त‍िहाई मामले मां या बच्‍चे में जीन में होने वाले नए बदलाव के कारण होते हैं। यदि एक महिला इस बीमारी की वाहक है मगर उसके पति को ये बीमारी नहीं है तो उनके बेटे को ये बीमारी होने की आशंका 50 फीसदी रहती है जबकि उनकी बेटी के हीमोफीलिया का वाहक बनने की आशंका भी 50 फीसदी होती है।

बीमारी के लक्षण

यदि किसी व्‍यक्ति को भयानक सिरदर्द हो रहा हो, लगातार उल्‍टी हो रही हो, गर्दन में दर्द हो, धुंधला या दो-दो दिखाई दे रहा हो, जोरदार नींद आ रही हो या फ‍िर किसी जख्‍म से लगातार खूर निकल रहा हो और वो बंद न हो पा रहा हो तो ऐसे में किसी डॉक्‍टर की सलाह लेनी चाहिए।

डॉक्‍टर अग्रवाल के अनुसार इस बीमारी को तीन श्रेणी ए, बी और सी में बांटा गया है और इन तीनों में अंतर किसी खास फैक्‍टर की कमी के आधार पर किया जाता है। इस बीमारी के प्राथमिक इलाज को फैक्‍टर रिप्‍लेसमेंट थेरेपी कहा जाता है। इस थेरेपी के तहत हीमोफीलिया ए के मरीजों में इंजेक्‍शन के जरिये वेन में कान्‍संट्रेट्स क्‍लॉटिंग फैक्‍टर 7 और हीमोफीलिया बी के मरीजों को क्‍लॉटिंग फैक्‍टर 9 दिया जाता है। इन फैक्‍टर्स को या तो रक्‍त प्‍लाज्‍मा से लेकर प्यूरीफाय किया जाता है या फ‍िर प्रयोगशाला में कृत्रिम तरीके से तैयार किया जाता है।

सुझाव

हीमोफील‍िया को जीवनशैली से जुड़े चंद उपायों के जरिये मैनेज किया जा सकता है। इसके लिए पर्याप्‍त समय तक शारीरिक गतिविधि करने की जरूरत है जो शरीर की मांसपेशियों और हड्ड‍ियों को मजबूत बनाते हैं। हालांकि ये ध्‍यान रखने की जरूरत है कि ऐसे व्‍यायाम न करें जिनमें चोट लगने और खून निकलने का खतरा हो।

खून को पतला बनाने वाली दवाइयों का इस्‍तेमाल बिलकुल नहीं करें। बेहतर है कि सीधे बाजार में उपलब्‍ध एस्‍प्रीन या आईब्रफेन जैसी दवाएं न खाई जाएं।

अपने दांतों और मसूढ़ों को सही तरीके से साफ करें। अपने डॉक्‍टर से पूछें कि मसूढ़े से खून आए बिना दांतों की सही तरीके से सफाई कैसे की जा सकती है।

अपने डॉक्‍टर से हेपेटाइटिस ए और बी के टीकाकरण के बारे में जानकारी लें। इसके अलावा खून में किसी भी तरह के संक्रमण से बचने के लिए खून नियमित रूप से जांच करवाएं।

Disclaimer: sehatraag.com पर दी गई हर जानकारी सिर्फ पाठकों के ज्ञानवर्धन के लिए है। किसी भी बीमारी या स्वास्थ्य संबंधी समस्या के इलाज के लिए कृपया अपने डॉक्टर की सलाह पर ही भरोसा करें। sehatraag.com पर प्रकाशित किसी आलेख के अाधार पर अपना इलाज खुद करने पर किसी भी नुकसान की जिम्मेदारी संबंधित व्यक्ति की ही होगी।